सूचना आयुक्तों की नियुक्ति पर जवाब तलब

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पूर्व डीजीपी अरुण गुर्टू की याचिका पर हाईकोर्ट ने 4 सप्ताह में सरकार से मांगा था जवाब
बिना सूचना के नियुक्त होने पर मुख्य सूचना आयुक्त इकबाल अहमद को पक्षकार बनाया


ब्यूरो, भोपाल

राज्य सूचना आयोग में आयुक्तों के खाली पड़ें पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया पर हाईकोर्ट ने सरकार से चार सप्ताह में जवाब तलब किया है। इसके साथ ही मुख्य सूचना आयुक्त इकबाल अहमद की नियुक्ति को भी संवैधानिक प्रक्रियाओं के अनुरुप नहीं पाते हुए आवश्यक पक्षकार बनाने के निर्देश दिए हैं।

सूचना आयुक्तों की नियुक्ति पर जवाब तलब
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीपति सुशील हरकौली एवं न्यायमूर्ति आलोक आराधे की युगलपीठ ने 1 अक्टूबर,2012 को पूर्व पुलिस महनिदेशक अरुण गुर्टू और अजय दुबे की याचिका की सुनवाई में अंतरिम आवेदन स्वीकार करते हुये नव
नियुक्त मुख्य सूचना आयुक्त इकबाल अहमद को आवश्यक पक्षकार बनाने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने याचिका को अगले सप्ताह सुनवाई हेतु रखा है। याचिका में मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया को विभिन्न आधारों पर चुनौती देते हुये नियुक्ति को निरस्त करने की मांग की गई है। यह याचिका मई 2012 में दायर हुई थी, जिसमें शासन द्वारा की जा रही मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों के 9 रिक्त पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी। इस पर कोर्ट ने 14 मई 2012 को कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, केन्द्र शासन, राज्य शासन और मुख्य मंत्री सचिवालय को नोटिस जारी करते हुये 4 सप्ताह में जवाब मांगा था। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया था कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं आयुक्त के पदों पर होने वाली नियुक्तियां उच्च न्यायालय के अंतिम आदेश के अधीन रहेंगी।

असंवैधानिक है नियुक्ति
याचिकाकर्ता के वकील सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता नें तर्क दिया कि उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्धारित किया गया है कि शासन द्वारा सांविधिक (अधिनियम के अंतर्गत होने वाली) पद पर नियुक्ति, कभी भी बिना विज्ञापन या सार्वजनिक सूचना के नहीं की जा सकती। इसके बाद भी मध्य प्रदेश शासन द्वारा अपने पसंदीदा लोगों को पद पर लाने हेतु बिना पारदर्शिता के नियुक्ति प्रक्रिया शुरु की गई, जोकि पूर्णत: असंवैधानिक एवं अनुचित है।

नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती
31 मार्च 2012 के बाद से राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त सहित सूचना आयुक्त के सभी पद रिक्त हो गए थे। इस पर रिक्त पदों को भरने के लिए राज्य शासन ने सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 15 के तहत नियुक्ति प्रक्रिया शुरु कर दी। कोर्ट में इसी नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया है कि नियुक्ति प्रक्रिया बिना किसी विज्ञापन एवं
सार्वजनिक सूचना के ही प्रारंभ कर दी गई। यह भी आधार लिया गया कि, जिस तरह से मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष के द्वारा सूचना आयुक्त की नियुक्ति का निर्णय किया जाता है, उससे भी सूचना आयोग जैसी संस्था की स्वतंत्रता, पारदर्शिता पर भी प्रश्न उठता है। नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया ही असंवैधानिक है, क्योंकि इससे न्यायिक क्षेत्र के व्यक्ति की नियुक्ति की कोई जवाबदारी नहीं रहती, जो कि इस तरह के पद पर उचित निर्णय कर सके। याचिका में सूचना अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 15(3), 15(5) एवं कई अन्य धाराओं की सांवैधानिकता को भी चुनौती दी गई थी। इसके बाद भी 3 अगस्त 2012 को इकबाल अहमद को मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्त कर दिया गया। ऐसे में इकबला अहमद की नियुक्ति को निरस्त करने की मांग करते हुये एक अंतरिम आवेदन 14 सितम्बर को उच्च न्यायालय में पूर्व से लंबित याचिका में दायर किय गया था। इसी आवेदन पर कोर्ट ने इकबाल अहमद को पक्षकार बनाने का आदेश दिय है।