अभिषेक पाण्डेय, मुंबई.
( लाइव इंडिया वरिष्ठ संवाददाता)
देश के खिलाफ अब तक की सबसे खतरनाक और सुनियोजित हमले की सिहरन अभी तक मुंबई में बाकी है। पाकिस्तान में आतंकी प्रशिक्षण के बाद किए गए हमले के नतीजे में पुलिस को अपने बेहतरीन अफसरों को गंवाना पड़ा तो वहीं, करोडोÞ की संपत्ति का नुकसान भी उठाना पड़ा। बावजूद इसके, कुछ जांबाज पुलिस वालों ने जान पर खेल कर सिर्फ लाठी डंडे के दम पर गोलियां बरसाते आतंकियों से लोहा लिया और उनमें से एक अजमल कसाब को जिन्दा पकड़ने में कामयाब भी रहे।इस संबंध में टेलीविजन पर पहली बार 26/11 के जाबांज पुलिस आफिसरों ने बताया 26 नवम्बर 2008 की उस रात का आंखों देखा हाल कि, आखिर हुआ क्या था? उस रात का मंजर, जिस रात कसाब और उसके नौ साथियों नें मुंबई के सीने को गोलियों से छलनी कर दिया था, कैसे मुंबई पुलिस ने लाठी डंडे से पकड़ा खुंखार आतंकियों को। कैसै कसाब की एके-47 राइफल और हैंडग्रेनेड पर भारी पड़ा मुंबई पुलिस का लाठी डंडा। कैसै पकड़ा गया कसाब को, कैसे शहीद हुए तुकाराम ओंबले? क्या मुंबई पुलिस को पहले ही क्षण पता चल गया था कि ये आतंकी हमला है? और सबसे बड़ा सवाल, कि क्या मुंबई हमले के बाद जाग गई है सरकार? सच तो यही है कि, ये एसे सवाल हैं, जो कसाब के फांसी देने के बाद भी खत्म नहीं होते हैं।
लगा दी जान की बाजी
ऐसे में इन सवालों के जवाब खुद उस पुलिस आफिसर जानना दिलचस्प होगा, जिसने आबू इस्माईल का एनकाउंटर किया है। जी हां, मुंबई पुलिस के पुलिस इंस्पेक्टर हेमंत बावधनकर, 26/11 हमले के समय गीरगांव चौपाटी की टीम को लीड कर रहे थे। हेमन्त बताते हैं कि, रात जब डुयुटी पर पहुंचे तो पता चला कि मुंबई पर आतंकी हमला हुआ और 2 लोग स्कोडा कार से भागे हैं। ऐसे में सबसे पहला काम तो यही था कि, चौपाटी पर मौजूद भीड़ को सुरक्षित किया जाए, इसके लिए तत्काल पूरे गिरगांव चौपाटी को खाली करवाया गया। पुलिस टीम को लीड करते हुए हेमंत ने जवानों को सड़क किनारे पोजीशन लेने के निर्देश दिए। हेमंत बावधनकर पुलिस इंस्पेक्टर डोंगरी के अनुसार, उस समय उनके पास 2 एसएलआर 2 पिस्तौल और लाठी डंडे ही थे, जबकि कार सवार कसाब के पास 2 एके 47, 2 पिस्तौल, 60 जिंदा कारतूस, एक जिंदा हैंडग्रेनेड था। कसाब को पकड़ने के बाद इनको बाद में निष्क्रिय कर दिया गया।
समर्पण का नाटक किया कसाब ने
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| शहीद तुकाराम ओंबले |
सरकार के रवैए पर सवाल
समशेर खान पठान पूर्व एसीपी मुंबई पुलिस बताते हैं कि, लियोपोल्ड में फायरिंग की पहली खबर लगते ही पुलिस के वाकी टाकी पर एक मैसेज आया कि अंडरवर्ल्ड के 2 गुटों में फायरिंग हो रही है। इसके बाद सीएसटी से करीब पायधुनी पुलिस स्टेशन के सीनियर पुलिस इस्पेक्टर समशेर पठान ने सबसे भीड़ भरे इलाके की नाके बंदी कर खुद पूरे टीम की कमान सम्भाली। इसके बाद जो भी हुआ, वह पूरा देश जानता है, लेकिन पठान इस बात से खिन्न हैं कि, हमले के बाद सरकार ने सिक्योरिटी को लेकर कई दावे किए थे, शहर भर में सीसीटीवी लगाने से लेकर पुलिस को अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने, पुलिस वालों को ट्रेनिंग और कोस्टल इलाके की सुरक्षा सख्त करने के प्लान बने थे। इसके बाद वक्त के साथ सारे दावे और प्लान फाइलों में कहीं खो गए हैं।
बहरहाल, भले ही कसाब के फांसी के बाद सरकार राजत की सांस ले रही हो लेकिन उस रात का मंजर जिस भी पुलिस वाले ने देखा उसके लिए ये जीवन एक नए जन्म से कम नहीं। हेमंत बावधनकर कहते हैं कि उस रात के बाद कई दिनों तक जैसे ही शाम होने लगती और रात की स्ट्रीट लाईट जलती वैसे ही डर लगने लगता था।

