बड़े शहरों में छिनता बचपन

Staff Author
कामकाजी माताओं की अपने बच्चों से बढ़ती दूरियों के नतीजे बेहद चिंताजनक और परेशान करने वाले

अभिषेक पाण्डेय, मुंबई.



बड़े शहरों में छिनता बचपन
पिछले दिनों न्यूज रुम बैठे-बैठे अपने एक सहकर्मी से बात हो रही थी, उसी दौरान उसने कहा कि ..

‘मैं रात भर सो नहीं पाती हूं क्योंकि जब आफिस से लौट कर घर जाती हूं तो आधी रात तक मेरी बेटी मुझे सोने नहीं देती है और चिड़चिड़ी हो गई है’. ये कोई एक बच्चे की नहीं, बल्कि शहरी परिवेश में रहने वाले हर उन बच्चों की है, जिनकी मां काम के लिए बाहर जाती है। 3 महीने की मेटरनिटी लीव के बाद ,जब बच्चों को मां का प्यार नहीं मिलता है तो वो केयर टेकर के साथ रहने पर मजबूर होते हैं। एसे में मां के साथ उनका व्यवहार चिड़चिड़ा हो जाता है .. तो क्या शहरो में बच्चों का बचपन छिनने लगा है।

डा. अजय पाण्डेय कहते हैं कि ‘मां जब बेबी फीडिंग कराती है तो बच्चों का अट्रेक्शन बढ़ता है। एसे में जब पूरे दिन बच्चा मां से महरुम रहता है तो मां की कमी खलती है और चिड़चिड़ापन आ जाता है। और जब पूरे दिन केयर टेकर पर छोड़ते हैं तो उसका ध्यान उस तरीके से नहीं रख पाते और निजी जिंदगी की समस्याओं की खीझ बच्चों पर निकालते हैं, जिसके चलते बच्चों के भीतर मां के लिए गुस्सा दिखने लगता है, जोकि उम्र बढ़ने के साथ साथ बढ़ता चला जाता है। ये परेशानी खासकर प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाली महिलाओं के साथ ज्यादा है।

हर बड़े शहरों का कमोबेश यही हाल है, बच्चों के साथ सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है कि, शहरों में खेलने के स्पेस यानि जगह चाहे वो गार्डेन हो या कोई खुली जगह, लगातार कम हो रही है। एसे में बच्चे अपने मां के सहारे घरों में रहते हैं और जब मां खुद बाहर काम पर चली जाती हैं तो बच्चे क्या करें और यही वजह है कि बच्चे जिद्दी और चिड़चिड़े होते जा रहे हैं। भावनाओं का जुड़ाव लगातार कम होते जा रहा है, 2 साल की उम्र से ही बच्चों पर बिना मां की देखरेख के अच्छी पढ़ाई का बोझ बढ़ता जा रहा है। साथ ही संयुक्त परिवार का चलन भी अब शहरों से कहीं दूर होता जा रहा है। एसे में केयर टेकर महज पैसे के लिए उन बच्चों का ध्यान परिवार और मां की तरह नहीं रखते हैं, जिसके नतीजे में बच्चों के अंदर एक गुस्सा दिखने लगता है।
बड़े शहरों में छिनता बचपन

लगातार बड़े शहरों के घटनाक्रम को देखते इस बिषय से जुड़े हुए कई एसे सवाल खड़े हो जाते हैं, क्या बच्चों के प्रति मां की ममता कम होती जा रही है? क्या बच्चे अपने बचपन से महरुम होते जा रहे हैं? आखिर शहरी बच्चो में इतना चिढ़चिढ़ापन क्यों आ रहा है?

तो शायद एक एसा जबाब है जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं, वो है बचपन का प्यार शहरों में खत्म होता जा रहा है। अब जरुरत हैं उन नन्हें बचपन को बचाने की, जो आपसी टेंशन और कई दूसरी वजहों से अपने आप को अकेला महसूस करने लगे हैं । और अंत में इस मामले पर गजल गायक जगजीत सिंह की गाई एक गजल याद आती है कि

‘ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी लेलो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी,

मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज की कश्ती वो बारिस का पानी’
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