पर्यटकों के लिए अजूबा, दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी वत्सला

Staff Author
95 वर्ष की उम्र में भी निभा रही हैं दादी मां की भूमिका

पन्ना ही नहीं पूरे मध्यप्रदेश की शान बन चुकी है यह हथिनी


अरुण सिंह, पन्ना.


पन्ना टाइगर रिजर्व स्थित अपने आवास में हथिनी वत्सला
पन्ना टाइगर रिजर्व स्थित अपने आवास में हथिनी वत्सला
 प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की शोभा बढ़ाने वाली दुनिया की सबसे उम्रदराज हथिनी वत्सला पर्यटकों के लिए एक अजूबा बन चुकी है. 
पार्क भ्रमण पर आने वाले पर्यटक इस हथिनी की जीवनगाथा को सुनकर जहां प्रभावित होते हैं, वहीं इसके वात्सल्य व प्रेमपूर्ण व्यवहार को देख खुशी से झूूम उठते हैं. वत्सला को दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी माना जा रहा है, इस लिहाज से भी यह पन्ना ही नहीं अपितु पूरे प्रदेश की अनमोल धरोहर है.
वत्सला को दो बार मौत के मुंह में जाने से बचा चुके पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्रांणी चिकित्सक डा. एसके गुप्ता इस हथिनी के जीवन से जुड़ी घटनाओं को भाव विभोर होकर सुनाते हैं. इस बुजुर्ग हथिनी को पार्क के ही दूसरे हाथी रामबहादुर ने मद (कामक्रीड़ा के लिए मदमस्त होने का दौर) के दौरान प्राण घातक हमला कर बुरी तरह से घायल कर दिया था. वर्ष 2003 व 2008 में हाथी ने दो बार हमला किया और दांत से वत्सला का पेट चीर दिया था, लेकिन दोनों ही बार वन्य प्रांणी चिकित्सक और टाइगर रिजर्व के कर्मचारियों ने हथिनी को बचाने के लिए दिल व दिमाग से हर संभव प्रयास किया. नतीजतन वत्सला 95 वर्ष की आयु में भी पन्ना टाइगर रिजर्व की शोभा बढ़ा रही है. 
इलाज के दौरान हथिनी और चिकित्सक के बीच कुछ ऐसा आत्मीय रिश्ता कायम हो गया है कि, चिकित्सक डा. गुप्ता के निकट आते ही हथिनी प्रफुल्लित हो जाती है तथा उसकी आंखों से आंसू निकलने लगते हैं. हथिनी वत्सला डा. गुप्ता के ऊपर अपनी सूंड रखकर ऐसे दुलार करती है, मानो वह आशीषों की बौछार कर रही हो.

कमजोर हो चुकी है वत्सला
वन्य प्रांणी चिकित्सक डा. गुप्ता बताते हैं कि हथिनी वत्सला के सारे सिस्टम विशेषकर पाचन तंत्र काफी कमजोर है. वर्षों से इस हथिनी के दांत नहीं है. ऐसी स्थिति में इसको विशेष भोजन दिया जाता है. खाने में सुबह दलिया, गुड़, नमक व तेल तथा शाम को आटा, चावल, नमक, तेल, गुड़, नारियल गोला, हल्दी व चने का आटा देते हैं. इसके अलावा जंगल में घास व हरी पत्तियां भी खाती है. वत्सला ने पन्ना टाइगर रिजर्व में कभी किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया, लेकिन उसका लगाव दूसरी हथिनी के बच्चों के साथ हमेशा रहा है. वत्सला बच्चों की देखभाल दादी मां की तरह करती है तथा जन्म के समय यह दाई की भूमिका का भी बखूबी निर्वहन करती है.

केरल के जंगल से आई है वत्सला
हथिनी वत्सला केरल के जंगलों में पली - बढ़ी है. उसका प्रारंभिक जीवन नीलाम्बुर वन मण्डल (केरल) में वनोपज परिवहन में व्यतीत किया. वत्सला को 1971 में केरल से होशंगाबाद लाया गया, उस समय इसकी आयु 50 वर्ष से अधिक थी. वर्ष 1993 में हथिनी वत्सला को पन्ना राष्ट्रीय उद्यान लाया गया और यहां पर पर्यटकों को घुमाने तथा पेट्रोलिंग कार्यों में संलग्न रही. हथिनी वत्सला की उम्र और कमजोर होते स्वास्थ्य को दृष्टिगत रखते हुए वर्ष 2003 में उसे कार्य मुक्त कर दिया गया, लेकिन इसकी पूरी देखभाल की जाती है. सच तो यही है कि, इस बुजुर्ग हथिनी की मौजूदगी से पन्ना टाइगर रिजर्व की ख्याति बढ़ी है.